आंदोलन

कोई भी आंदोलन चलाने के लिए पैसों की जरूरत होती है। ये अलग बात है कि, चलाने वाले ने कुछ नहीं कमाया।

उसके घरवाले उससे नाराज़ हैं। इसलिए वो कोई भी खुशी उनसे शेयर नहीं करते। आज लोगों ने ये किताब पढ़ी, आज लोगों ने चाय की जगह कुल्फी खाई।

आज पूरा दिन जगह की साफ़ सफ़ाई और किताबों के टेप फ़ेविकोल से कपड़े सीने में गया।

अब जब वो पूछते हैं कि आज तूने क्या किया? कुछ नहीं बस ऐसे ही खाया पिया सो गए। ऐसा बोल के खुद भी नाराज़ हो लेते हैं और घरवालों को भी नाराज़ कर लेते हैं।

दोनों ही एक दूसरे से नाराज़ हैं पर कहते नहीं, बस रोज़ बात करते हैं क्योंकि घरवालों के प्यार की याद आ जाती है और पीठ पीछे से थोड़े आँसू भी, कि वो हमसे क्यों खुश नहीं हैं?

लेकिन वो भी करें तो क्या करें, अपनी आदत से मजबूर हैं।

पैसा उसे कभी समझ नहीं आया। पैसा कीमती है लेकिन कीमती चीज़ कमाना कभी मन में नहीं आया।

ज़िन्दगी अच्छी चल रही है। आगे का सोचना न सोचना डर भी लगा तो डर को भगाने के लिए आंदोलन शुरू करके ऐसी खुशी हुई कि चलो कुछ काम किया आज।

इब्नबतूती हो जाते हैं ऐसे लोग।

Join the ConversationLeave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Comment*

Name*

Website